सोमवार, 30 अप्रैल 2012



बड़े बड़े सुखों की चाह में

हम छोटे सुख को भूल गए

दिन और रात की चकाचोंध में

हम सुबह शाम को भूल गए

याद, है कब सूरज देखा था

संध्या को जब चाँद उगा था

देखा था माँ का सूट नया

यां बहन भी भूखी बैठी थी 

कब देखा   था पत्नी को जी भर के

सारे छोटे सुख तुम भूल गए 

क्या याद है तुम को कब

ली थी माथे कि बिंदिया

और रचाई थी मेहँदी अपने हाथों से

बिंदिया और मेहँदी पूछती है

अपना नाम जो इस में लिखा था

बिंदिया को लगाना भूल गए

ए हमसफ़र तुम हमराह तो बने 

पर हमदर्द क्यूँ बनना भूल गए

                    ....द्वारा नीरजा 
वो जो लम्हे तेरे साथ गुजर जाते हैं
 
बाक़ी तो मौत है बस वही जिंदगी दे जाते हैं 


हम ने सोचा नहीं कभी जाती हुई सांसों के बारे में

 
हम जिंदगी कि तलाश में ही जिए जाते हैं



..............................................नीरजा 

           लाडली बेटी


  •  जब जन्म लेती हैं

  •  खुशियाँ साथ लाती है बेटी,

  •   माँ कि परछाई पिता का रूप होती है

  •   ईश्वर की सौगात होती है 
  •  
  •   सुबह की" पहली किरण" है

  •   तारों की शीतल छाया है बेटी

  •   त्याग और समर्पण सिखाती है

  •    नए नए रिश्ते बनाती है बेटी

  •   जब ससुराल जाये बड़ा रुलाती है

  •   पर जिस घर जाए उजाला लाती है बेटी

  •   बेटी की कीमत उनसे पूछो........
  • .
  •   जिनके पास नहीं है बेटी .....माँ
  •  
  •                            द्वारा    नीरजा  

                                               प्रेम  


प्रेम बंधन है ...प्रेम एक दुसरे को गुलाम बनाता है ...जब इसी गुलामी के के बंधन किसी वजह से कमजोर पड़ते हैं तो तिलमिलाहट होती है ...प्रेमी नहीं चाहते अपने एकाधिकार को किसी से बाँटना ....पर यूँ भी देखें तो क्या बाँध पाते हैं प्रेम में किसी को ....प्रेम का बसेरा तो केवल मन ही है ....मन तो बंधता नहीं ....सारे बंधन तो तन पर ही कसे जाते हैं ....प्रेम के नाम पर तन ही बाँधा जाता है ....जिम्मेदारियों में....बंधनों में ....और समाज की तथाकथित रूढ़िवादी परम्पराओं का तन पर पहरा बिठा दिया जाता है
प्रेम को मैंने महसूस किया है ...वह आलौकिक है जो बिना किसी दबाव याँ स्वार्थ के होता है ....प्रेम त्याग में है ...बंधन में नहीं ....सम्पूर्ण में को प्रेम में बहा देने का नाम ही प्रेम है .....और इस परिभाषा को पूर्णता देने के लिए प्रेम की गहराई में उतरना होगा !!!!!!

        दर्द



इस भटकती भीड़ में ...
.एक दिशा को तलाशते हुए मैं....
अपना आस्तित्व  बनाये रखने की आस में.....
अपने ही हाथों शोषित हुई हूँ मैं...
खाए हैं दिल पे  जख्म ..
जो आज भी रिसते हैं ...
दर्द होता है बेइंतेहा ....
दरकता है भीतर कुछ ...
.फिर भी जी रही हूँ ...
शायद किसी आस पर ....
किसी मरहम कि तलाश में...
.जो मेरे इन जख्मों को भर दे ....
मगर अब यह नासूर हैं ....
अपनों के दिए हुए .....
रिसते रहेंगे सदा ...
जो न भर सकेंगे कभी ...
.न मिलेगी दिशा ....
खत्म हो जायेगी कतरा कतरा ...
.मेरी मोहब्बत मेरा जूनून न बन जाना .....
अब मेरे ही साथ दफ़न हो जाना !!!!!

गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

अतीत जो कभी वर्तमान  हुआ करता था 
न अजर है न अमर है
बस यादें ही शेष हैं 
यादें  भी  अमर कहाँ 
खत्म हो जाएँगी 
काल के रूप से 
तन के संग साथ ही ,
अमर तो कुछ भी नहीं 
तब कालजई कौन हुआ ?
खुद काल भी तो कालजयी न हुआ 
आज जो वर्तमान है 
कल वो अतीत बन के 
अँधेरे के गर्त में खो जायेंगा 
अतीत जो कभी वर्तमान हुआ करता था !!!!!!!!                            नीरजा  

मेरी  महान  बेटी


 
मेरे प्रेम की अनमोल पहचान हो तुम 
 जिन्दगी  के  रास्ते  पे  चलती  रहो .
तु   रूह का   सकून और   प्राण हो 
भगवान     के  मन्दिर  में 
जलती  हुई ज्योति हो  तुम 
अपनी  दुनिया    को  सहेजने  के  लिये 
हमेशा  परेशान 
पर " देवी"  तुम  कभी  न  हो पाओगी
 मेज  कुर्सी    चाय  का   कप 
पैर की   उतरन 
तुम्हारे  खून  में बह रहा है खून मेरा 
उस  के  लिये  अभी  
 बहुत कुछ जानना है 
तुम्हें  रहना है एक
 बहती हुई पवित्र  नदी की  तरह
 जिस के साथ 
 लोगों कि अनाम आस्था जुडी है 
मैं रहूँ न रहूँ कोई रहे न रहे 
तुम रहोगी , तुम जमीन हो  
तुम से ही उपजती है
 आने वाले जीवन की
 खुदा की अनमोल देन 
 अनजान लोगों को अपना बना कर
 खुद में समां लेना
 सब को  प्रेम और बाँटना
 सारी दुनिया में  
अनमोल लोगों के साथ ही 
 अनाम  लोगों   के  साथ् आपने   अगम 
रास्ते  पर  चलते  जाना
 पवित्र  ग्रन्थो की  आत्मा  हो  तुम 
मेरी  जान  जिन्दगी  नहीं लगती थी  तेरे  बिना 
पर मेरे माँ होने कि पहचान हो तुम 
                       द्वारा नीरजा 
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बुधवार, 4 अप्रैल 2012



एक प्यार भरी मुलाकात 

वो भीड़ भरी महफ़िल में

 उनका अचानक यूँ चले आना 

वो धीमे से करीब आ कर 

कंधे पे हाथ रख देना 

नयनो का नयनो से मिलन 

और आँख का भर जाना 

प्यार मे लबों का थरथराना

वो आगे बढ के तुम्हारा 

आगोश में भर लेना

वो साँसों की महक 

लो आ गया हूं मैं तुम्हारे लिए

मगर जानती हूं यह कुछ पल हैं मेरे हिस्से में 

और तुम लौट जाओगे अपनी दुनिया में 

दे दो एक नयी जिन्दगी मुझको इन पलों में 

जी लूं मैं इन लम्हों को 

जो आज के बाद यादें बन जायेंगे 

और हर रात मुझे जीना होगा तुम्हारी धरोहर के साथ 

और हर रात मुझे जीना है तुम्हारी धरोहर के साथ !!!!!!!!

                                            नीरजा 

मंगलवार, 3 अप्रैल 2012


उम्र कर दी फ़नाह्

उम्र  कर दी फ़नाह् 

इस जहान में हमने 

आज  कहते हो 

कि किया क्या है !

ढोते रहे सर्द रिश्तो को 

ता उम्र हम 

आज कहते हो तुम 

हुआ क्या है !!

दिये है ज़ख्म अपनो ने हमे 

पूछ्ते हो कि फ़िर् खता क्या है !!

कैद हो गये अपनी खमोशी की जंजीरों में हम
 
अब पूछ्ते हो कि ये सज़ा क्या है !!! 

  •  नीरजा 

  विनती 
मन कि बातें मन ही जाने 
ह्रदय सुन सके ह्रदय का स्पंदन 
महारास के लिए चाहिए
शरद पूर्णिमा का वृन्दावन 
सजल गोपिओं की आँखों को 
मुरलीधर साकार चाहिए हाँ प्रिय मन का तो आधार तुम्ही हो 
कान्हा तुम से विनती है 
नयनो को प्रियवर साकार चाहिए 

                                              नीरजा 


आज एक और दिन बीत रहा था,  मैने बहुत रोकना चाहा पर वो फिर डूब गया ।  ये बेहोश रात आज फिर छा रही थी, चेतना को अपने अधीन  कर मुझे भी बेहोश कर रही थी,  बस एक तेरे खयाल ने मुझे बचा लिया,  रात सोती रही  और मैं जागती   रही  ।                                नीरजा 





जीवन 

जीवन एक दिखावा

एक ख़ामोशी

एक घुटन 

खोखली सी हंसी 

आंसूओं का इंधन

धीमे धीमें सुलगते रहना

कुछ पाने की चाह में 


नया इन्द्रधनुष

आकाश में ढूदते रहना

क्या नए रंग फीके रंगों को

खुद में समेट पाएंगे

क्या इन रंगों के बिना

वह अक्स अधूरे नहीं रह जायेंगे

क्यूँ अब इस बेरंगी खोखली

खामोश रंगहीन जिन्दगी को

सही मायने दिए जायें.......

                                नीरजा          

सिसकता है मेरे भीतर का 

प्रेमी पंछी

इक नयी उड़ान के लिए 

सुबह से शाम तक

आस की आँखों में पहचान लिए 

खुला था इक दिन 

यह पिंजरा भी अचानक 

और उड़ान के लिए फैलाये थे पंख 
मगर
मगर मैं भूल चुकी थी 

खुले आसमान की उड़ान 

आज इसी तरह 

फिर से पिंजरे की सलाखों में ढूँढती रहती हूँ 

उन पलों का इंतज़ार है 

जब पाऊँगी मैं
खुद को कभी 

खुले आसमान में
न जाने कब तक जारी रहेगा 

यह सिलसिला 

अंतहीन यात्रा का अंतहीन इंतज़ार 

                ......द्वारा  नीरजा