बड़े बड़े सुखों की चाह में
हम छोटे सुख को भूल गए
दिन और रात की चकाचोंध में
हम सुबह शाम को भूल गए
याद, है कब सूरज देखा था
संध्या को जब चाँद उगा था
देखा था माँ का सूट नया
यां बहन भी भूखी बैठी थी
कब देखा था पत्नी को जी भर के
सारे छोटे सुख तुम भूल गए
क्या याद है तुम को कब
ली थी माथे कि बिंदिया
और रचाई थी मेहँदी अपने हाथों से
बिंदिया और मेहँदी पूछती है
अपना नाम जो इस में लिखा था
बिंदिया को लगाना भूल गए
ए हमसफ़र तुम हमराह तो बने
पर हमदर्द क्यूँ बनना भूल गए
....द्वारा नीरजा