दर्द की दास्ताँ
यहाँ वहाँ सब एक हैं
खून के रिश्ते निशाँ
कहीं हूँ माँ बेटी कहीं
नन्हे कन्धों पे बोझ ज्यादा
यहाँ वहाँ ढोती रही
ढूँढती रही कहीं माँ
बेटी बन पीड़ा सही
पुकारती सदा रही
यहाँ वहाँ यहाँ वहाँ
कहीं पे बोझ दिल पे है
उम्मीद कि हलकी सी किरन
आज मैं हूँ कहाँ
पूछती हूँ लौट कर
कहाँ आधार है मेरा
कहाँ है घर ?कहाँ मकान
ढूंढती रही हूँ माँ
यहाँ वहाँ यहाँ वहाँ
कहीं मैं बन गयी थी माँ
दर्द की पीड़ा सही
बच्चा कहीं भीतर छुपा
ओढ़ ली है मैंने माँ
सही हैं सारी दूरियां
नहीं मिटा सकी निशान
पत्थर के पैने घाट पे
रस्सियों के निशान
ढूँढती सदा रही सदा
यहाँ वहाँ यहाँ वहाँ ...........................नीरजा