मंगलवार, 21 अगस्त 2012

दर्द की दास्ताँ


दर्द की दास्ताँ


यहाँ वहाँ सब एक हैं
 खून के रिश्ते निशाँ
 कहीं हूँ माँ बेटी कहीं
 नन्हे कन्धों पे बोझ ज्यादा
 यहाँ वहाँ ढोती रही
 ढूँढती रही कहीं माँ 
बेटी बन पीड़ा सही
 पुकारती सदा रही
 यहाँ वहाँ यहाँ वहाँ 

कहीं पे बोझ दिल पे  है 
 उम्मीद कि हलकी सी किरन
 आज मैं हूँ कहाँ 
पूछती हूँ लौट कर 
 कहाँ आधार है मेरा
 कहाँ है घर ?कहाँ मकान 
 ढूंढती रही हूँ माँ
 यहाँ वहाँ यहाँ वहाँ 

कहीं मैं बन गयी थी माँ
 दर्द की पीड़ा सही
 बच्चा कहीं भीतर छुपा
 ओढ़ ली है मैंने माँ
 सही हैं सारी दूरियां
 नहीं मिटा सकी निशान 
पत्थर  के पैने घाट पे
 रस्सियों के निशान
 ढूँढती सदा रही सदा 
 यहाँ वहाँ यहाँ वहाँ ...........................नीरजा



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