अहमद फ़राज़ ....
कुछ शेर !!! अहमद फ़राज़ ...
इससे पहले की बेवफा हो जाएँ...
क्यों न ऐ दोस्त हम जुदा हो जायें...
तू भी हीरे से बन गया पत्थर...
हम भी कल क्या से क्या हो जाएँ...
सुना है उसके बदन की तराश ऐसी है...
की फूल अपने कबायें क़तर के देखते हैं...
रुके तो गर्दिशें उसका तवाफ करती हैं...
चले तो उसको जमाने ठहर के देखते हैं...
अहमद फ़राज़...
कुछ शेर !!! अहमद फ़राज़ ...
इससे पहले की बेवफा हो जाएँ...
क्यों न ऐ दोस्त हम जुदा हो जायें...
तू भी हीरे से बन गया पत्थर...
हम भी कल क्या से क्या हो जाएँ...
सुना है उसके बदन की तराश ऐसी है...
की फूल अपने कबायें क़तर के देखते हैं...
रुके तो गर्दिशें उसका तवाफ करती हैं...
चले तो उसको जमाने ठहर के देखते हैं...
अहमद फ़राज़...
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