रविवार, 16 दिसंबर 2012

दोस्त बनना ....व्यापारी नहीं !!!!




आप जिसे प्रेम संबंध कहते है ,वह क्या है ?वह बिना शर्त जुडना है ...अगर आप में जुड़ने का भाव नहीं है ,तो आप हमेशा किसी भी व्यक्ति के साथ एक बढ़िया सौदा पटाने की कोशिश करेंगे ....तब आप को सिर्फ मूर्ख व्यक्तियों से ही मिलना चाहिए ,जो आप के झांसे में आ जांए ...बुद्धिमान को तुम एक बार झूठ का शीशा दिखा कर ऐसा कर तो लोगे ....पर उसके बाद ...???

जब आप किसी को स्वयं अपने शुद्ध भाव के साथ अपनाते हो ...तभी ब
ात बनती है ...कभी भी एक तरफ़ा नहीं ...वर्ना इक दिन भेद खुलते ही टूट जायेगी ....और तब ....बहुत देर हो चुकी होगी ,

दोस्ती और प्रेम में भाव त्याग का ही रहता है ....जो नहीं समझ पाते ...वो व्यापारी हैं ...प्रेम और दोस्ती के नाम के व्यापारी !!! और व्यापारी सदा अपना हित सधता है .....!!!

दोस्त बनना ....व्यापारी नहीं !!!!
 

1 टिप्पणी:

  1. मौलिक रचना। समाज की सच्चाई को समेटे हुए। एक पारखी ही समाज की गतिविधयों पर इतनी सूक्ष्म नजर से अवलोकन करता है। विषयवस्त भी बहुत ही सटीक और उसका समाधान भी कम शब्दों में रखा गया है।

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